कितना कुछ सह लेता यह मन
कितना कुछ सह लेता यह मन! कितना दुख-संकट आ गिरता अनदेखी-जानी दुनिया से, मानव सब कुछ सह लेता है कह पिछले कर्मों का बंधन। कितना कुछ सह लेता यह मन! कितना दुख-संकट आ गिरता इस देखी-जानी दुनिया से, मानव यह कह सह लेता है दुख संकट जीवन का शिक्षण। कितना कुछ सह लेता यह मन! कितना दुख-संकट आ गिरता मानव पर अपने हाथों से, दुनिया न कहीं उपहास करे सब कुछ करता है मौन सहन। कितना कुछ सह लेता यह मन!

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