पुष्प-गुच्छ माला दी सबने, तुमने अपने अश्रु छिपाए।
एक चला नक्षत्र गगन में
और विदा की आई बेला,
और बढ़ा अनजान सफ़र पर
लेकर मैं सामान अकेला,
और तुम्हारा सबसे न्यारा--
पन मैंने उस दिन पहचाना।
पुष्प-गुच्छ माला दी सबने, तुमने अपने अश्रु छिपाए।
रस्म सदा से जो चल आई
अदा उसे करना मुश्किल क्या,
किसको इसका भेद मिला है
मुँह क्या बोल रहा है, दिल क्या,
पिघले मन के साथ मगर था
जारी यह संघर्ष तुम्हारा,
शकुन समय अशकुन का आँसू पलक-पुटों से ढलक न जाए।
पुष्प-गुच्छ माला दी सबने, तुमने अपने अश्रु छिपाए।