अभी विलम्ब है
क़दम कलुष निशीथ के उखड़ चुके, शिविर नखत समूह के उजड़ चुके, पुरा तिमिर दुरा चला दुरित वदन, नव प्रकाश में अभी विलंब है। ढले न गीत में नवल विहंग स्वर, चले न स्वप्न ही नवीन पंख पर, न खोल फूल ही सके नए नयन, युग प्रभात में अभी विलंब है। विदेश-आधिपत्य देश से हटा, कलंक भाल पर लगा हुआ कटा, स्वराज की नहीं छिपी हुई छटा, मगर सुराज में अभी विलंब है।

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