आज घन मन भर बरस लो
आज घन मन भर बरस लो! भाव से भरपूर कितने, भूमि से तुम दूर कितने, आँसुओं की धार से ही धरणि के प्रिय पग परस लो, आज घन मन भर बरस लो! ले तुम्हारी भेंट निर्मल, आज अचला हरित-अंचल; हर्ष क्या इस पर न तुमको-आँसुओं के बीच हँस लो! आज घन मन भर बरस लो! रुक रहा रोदन तुम्हारा, हास पहले ही सिधारा, और तुम भी तो रहे मिट, मृत्यु में निज मुक्ति-रस लो! आज घन मन भर बरस लो!

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