मैं जीवन में कुछ कर न सका
मैं जीवन में कुछ न कर सका! जग में अँधियारा छाया था, मैं ज्‍वाला लेकर आया था मैंने जलकर दी आयु बिता, पर जगती का तम हर न सका! मैं जीवन में कुछ न कर सका! अपनी ही आग बुझा लेता, तो जी को धैर्य बँधा देता, मधु का सागर लहराता था, लघु प्‍याला भी मैं भर न सका! मैं जीवन में कुछ न कर सका! बीता अवसर क्‍या आएगा, मन जीवन भर पछताएगा, मरना तो होगा ही मुझको, जब मरना था तब मर न सका! मैं जीवन में कुछ न कर सका!

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