तम ने जीवन-तरु को घेरा
तम ने जीवन-तरु को घेरा! टूट गिरीं इच्छा की कलियाँ, अभिलाषा की कच्ची फलियाँ, शेष रहा जुगुनूँ की लौ में आशामय उजियाला मेरा! तम ने जीवन-तरु को घेरा! पल्लव मरमर गान कहाँ अब! कोकिल पंचम तान कहाँ अब! कौन गया निश्चय से सोने, देखेगा फिर जाग सवेरा! तम ने जीवन-तरु को घेरा! स्वप्नों ही ने मुझको लूटा स्वप्नों का, हा, मोह न छूटा, मेरे नीड़ नयन में आओ, करलो, प्रेयसि, रैन, सवेरा! तम ने जीवन-तरु को घेरा!

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