नयन तुम्हारे-चरण कमल में अर्ध्य चढ़ा फिर-फिर भर आते।
कब प्रसन्न, अवसन्न हुए कब,
है कोई जिसने यह जाना?
नहीं तुम्हारी मुख मुद्रा ने
सीखा इसका भेद बताना,
ज्ञात मुझे, पर, अब तक मेरी
पूर्ण नहीं पूजा हो पाई,
नयन तुम्हारे-चरण कमल में अर्ध्य चढ़ा फिर-फिर भर आते।
यह मेरा दुर्भाग्य नहीं है
जो आँसू की धार बहाता,
कस उसको अपनी साँसों में
अब तो मैं संगीत बनाता,
और सुनाता उनको जिनको
दुख-दर्दों ने अपनाया है,
मेरे ऐसे यत्न तुम्हारे पास भला कैसे आ पाते।
नयन तुम्हारे-चरण कमल में अर्ध्य चढ़ा फिर-फिर भर आते।