मुझसे चांद कहा करता है
मुझ से चाँद कहा करता है-- चोट कड़ी है काल प्रबल की, उसकी मुस्कानों से हल्की, राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है| मुझ से चाँद कहा करता है-- तू तो है लघु मानव केवल, पृथ्वी-तल का वासी निर्बल, तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ से नित्य बहा करता है। मुझ से चाँद कहा करता है-- तू अपने दुख में चिल्लाता, आँखो देखी बात बताता, तेरे दुख से कहीं कठिन दुख यह जग मौन सहा करता है। मुझ से चाँद कहा करता है--

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