देश के लेखकों से
बहुत प्रसिद्ध खेल हैं कृपाण के, कहां समान वह कलम-कमान के, अचूक हैं निशान शब्द-बाण के, कलम लिए हुए कभी न तुम डरो। समस्त देश की बसेक टेक हो, समस्त छिन्न-भिन्न जाति एक हो, विमूढ़ता जहां वहाँ विवेक हो, यही प्रभाव शब्द-शब्द में भरो। न आज स्वप्न-कल्पना-सुरा छको, न आज बात आसमान की बको, स्वदेश पर मुसीबतें, सुलेखकों, उसे प्रदान आज लेखनी करो।

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