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चलनी चालते हैं छोटे-बड़े आयोग। छेद-छेद से झराझर झरता है तथाकथित यशस्वियों का भ्रष्टाचार, आततायियों का अत्याचार।...

न घास है न घास की सुवास; खूँटे से बँधा घोड़ा अस्तबल में हिनहिनाता है;...

कंकरीला मैदान ज्ञान की तरह जठर-जड़  लम्बा चौड़ा गत वैभव की विकल याद में-...

न रही अब कुआँर में बादलों की चिरकुटिया लँगोटी, और सूर्य ने अंतरिक्ष से आँख तरेरी,...

लंदन में बिक आया नेता, हाथ कटा कर आया एटली-बेविन-अंग्रेज़ों में, खोया और बिलाया भारत-माँ का पूत-सिपाही, पर घर में भरमाया अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद का, उसने डिनर उड़ाया...

न बोलने पर भी, मैं सुनता हूँ तुम्हारे बोल तुम्हारी बोलती-आँखों से जो मुझे...

लघुत्तम है उसका अस्तित्व जिसे कोई नहीं जानता महत्तम है उसकी ग़रीबी क्षितिज तक फैली छायाओं के सामान...

ओस-बूंद कहती है; लिख दूं नव-गुलाब पर मन की बात। कवि कहता है : मैं भी लिख दूं प्रिय शब्दों में मन की बात॥ ...

शान्त है- क्रूस पर टँगे ईसा की तरह दीवार पर टँगी मेरी घड़ी देश-काल से अनभिज्ञ-...

मतदाताओं ने उसे मंत्री बनाया। अब क्या नहीं कर सकता वह? यानी...

सूर्यास्त मे समा गयीं सूर्योदय की सड़कें, जिन पर चलें हम तमाम दिन सिर और सीना ताने, ...

नदी में डूबे नगर के पाँव पानी हो गए न पाँव हैं...

अपने आपा से पानी का आपा बाँधे, सत्य-शील से तेज धार का तेवर साधे, चारु चरित से अपने तट पर...

कल का दिन चला गया, बिना प्यार-पौरुष के छला गया, हाथों से मला...

बयार में उड़ता है दारुण दिन की धूप का गरम मिजाज...

आसमान में उड़ी टिटिहरी, और उड़ते-उड़ते बोलते-बोलते बोल,...

घर की फुटन में पड़ी औरतें ज़िन्दगी काटती हैं मर्द की मौह्ब्बत में मिला काल का काला नमक चाटती हैं...

आदमियों के जेब कतर लेते हैं बढ़े-चढ़े मूल्यों के उपन्यास आँख से पढ़ कर...

काल-कवलित हुए यहीं अहिंसावतारी महाबीर तीर्थंकर आम आदमी के समान।...

कर्ज़ का पहाड़ बड़े से बड़े मर्ज़ से बड़ा है न मरा आदमी पहाड़ से मरा पड़ा है...

मैं उसे खोजता हूँ जो आदमी है और अब भी आदमी है...

चुप है पेड़ और चुप है पेड़ की बाँह पर बैठी चिड़िया।...

क्या खूब है कि आदिम आदमी सभ्य होते-होते शताब्दियों में...

अब भी गरीब है गाँव और गाँव का लोकतंत्र,...

पीड़ा पकड़े चले पंथ पर पानी- पवन- प्रलाप भोगते;...

ऐ इन्सानों! आँधी के झूले पर झूलो आग बबूला बन कर फूलो कुरबानी करने को झूमो ...

कुछ नहीं कर पा रहे तुम करने के काम से उनकी तरह कतरा रहे तुम; न किए का बोध गर्भ की तरह असमय गिरा रहे तुम;...

लड़ गए लड़ गए बड़े-बूढ़े जवान गिरगिटान, दूसरी क्रान्ति के प्रवर्तक कापालिक महान्,...

झूठ- अब झूठ नहीं; त्रिपुंड लगाए सच का अवतार हो गया;...

ऐसा कहते हैं सरकार के ‘चमचे’; न-कुछ से अच्छा है कुछ जो हो रहा है...

मुझे न मारो मान-पान से, माल्यार्पण से यशोगान से,...

इधर भी है एक दरवाजा जिधर सूरज उगता है। उधर भी है एक दरवाजा जिधर सूरज ढलता है।...

हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ। सुनो बात मेरी - अनोखी हवा हूँ।...

आग लेने गया है पेड़ का हाथ आदमी के लिए टूटी डाल नहीं टूटी...

अब आज निकल आईं कोंपलें जिस्म में--...

करोटन में आए हैं फूल जीवन हुआ अनुकूल; करोटन खुश-खुश खड़ा है...

भीतर पैठी चित् में चिन्ता, हिला रही है चीड़ वनों की रीढ़। हाँक रहा-...

अनुत्तरित मौन अब भी अनुत्तरित है दिक और काल में खड़ा हिमालय इसका प्रतीक है...

दाल-भात खा रहा है कौआ आदमी को खा रहा है आदमी का हौआ...

खटखुट कर रहा है काल मेरे कान के पास जल्द चलने के लिए...