क्या खूब है
क्या खूब है कि आदिम आदमी सभ्य होते-होते शताब्दियों में सफेदपोश हुआ और जब सफेदपोश आदमी इस सदी के छोर पर पहुँचते-पहुँचते नकाबपोश हुआ- न सभ्य रहा- न आदिम रहा- न आदमी रहा। क्या खूब है कि न्याय का नाटक खेलते-खेलते न्याय के पारंगत पात्र, अब विश्व के रंगमंच पर, नरक का नाटक खेलने में प्रवीण और पारंगत हुए। इस तरह आदमी की क्षय और असत्य की जय हुई।

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