अब भी
अब भी गरीब है गाँव और गाँव का लोकतंत्र, अभाव से ग्रस्त-- शोषित मुखाकृति का; फरेब और फंदे में फँसा, अँधेरे में आकंठ धँसा, मरणासन्न, धुँआँ पीता। लोग कोसते हैं गाँव में आए लोकतंत्र को, मौत के मुँह मे घुसे, नारकीय-- नारकीय जीवन भोगते हैं।

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