ओस की बूंद कहती है
ओस-बूंद कहती है; लिख दूं नव-गुलाब पर मन की बात। कवि कहता है : मैं भी लिख दूं प्रिय शब्दों में मन की बात॥ ओस-बूंद लिख सकी नहीं कुछ नव-गुलाब हो गया मलीन। पर कवि ने लिख दिया ओस से नव-गुलाब पर काव्य नवीन॥

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