मुझे न मारो
मुझे न मारो मान-पान से, माल्यार्पण से यशोगान से, मिट्टी के घर से निकालकर धरती से ऊपर उछालकर। मुझे न तोड़ो कमल–नाल से, तुहिन-माल से, अश्रु-माल से, लड़ लूँगा मैं कुपित काल से, अह-रह जलती नरक-ज्वाल से। मेरे साथी! बंधु-घराती! मेरी कविता मुझे बताती : खड़ी रहे लौ- बुझे न बाती- दंड-दमन से फटे न छाती।

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