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तूस और क़ाऊस देश से एक बूँद मदिरा सुंदर, क़ैक़ुवाद के सिंहासन से सुघर प्रिया के मदिराधर!...

श्री अरविन्द सभक्ति प्रणाम! स्वर्मानस के ज्योतित सरसिज, दिव्य जगत जीवन के वर द्विज चिदानंद के स्वर्णिम मनसिज...

कल कल छल छल सरिता का जल बहता छिन छिन! मर्मर सन सन वन्य समीरण से जाते दिन!...

स्नेहमय हुआ हृदय का दीप प्रिया की रूप शिखा धर मौन! प्रेम के हित दे निज बलिदान नहीं जी उठा सखे, वह कौन?...

यहाँ तो झरते निर्झर, स्वर्ण किरणों के निर्झर, स्वर्ग सुषमा के निर्झर निस्तल हृदय गुहा में...

इन्द्र सतत सत्पथ पर देवें मर्त्य हम चरण दिव्य तुम्हारे ऐश्वर्यों को करें नित ग्रहण! तुम, उलूक ममता के तम का हटा आवरण वृक हिंसा औ’ श्वान द्वेष का करो निवारण!...

तारों का नभ! तारों का नभ! सुन्दर, समृद्ध आदर्श सृष्टि! जग के अनादि पथ-दर्शक वे, मानव पर उनकी लगी दृष्टि!...

सुरालय हो मेरा संसार, सुरा-सुरभित उर के उद्गार! सुरा ही प्रिय सहचरि सुकुमार, सुरा, लज्जारुण मुख साकार!...

दूर दूर तक केवल सिकता, मृत्यु नास्ति सूनापन!— जहाँ ह्रिंस बर्बर अरबों का रण जर्जर था जीवन! ऊष्मा झंझा बरसाते थे अग्नि बालुका के कण, उस मरुस्थल में आप ज्योति निर्झर से उतरे पावन!...

कितने ही कल चले गए छल, रहा दूर नित मृग जल! हा दुख, हा दुख, कह कह सब सुख हुआ स्वप्नवत् ओझल!...

अंध मोह के बंध तोड़कर तु स्वच्छंद सुरा कर पान, क्षण भर मधु अधरों का मिलना, यह जीवन विधि का वरदान!...

वे चहक रहीं कुंजों में चंचल सुंदर चिड़ियाँ, उर का सुख बरस रहा स्वर-स्वर पर! पत्रों-पुष्पों से टपक रहा स्वर्णातप प्रातः समीर के मृदु स्पर्शों से कँप-कँप!...

अंगों में हो भरी उमंग, नयनों में मदिरालस रंग, तरुण हृदय में प्रणय तरंग! रोम रोम से उन्मद गंध...

तुम ऋतुपति प्रिय सुघर कुसुम चय हम कंटक गण! स्वाति स्वप्न सम मुक्ता निरुपम तुम, हम हिम-कण!...

मैं नहीं चाहता चिर-सुख, मैं नहीं चाहता चिर दुख; सुख-दुख की खेल मिचौनी खोले जीवन अपना मुख। ...

छूट जावें जब तन से प्राण सुरा में मुझे कराना स्नान! सुरा, साक़ी, प्याली का नाम सुनाना मुझे उमर अविराम!...

जीवन का फल, जीवन का फल! यह चिर यौवन-श्री से मांसल! इसके रस में आनन्द भरा, इसका सौन्दर्य सदैव हरा;...

हाय, चुक गया अब सारा धन, रिक्त हो गया जीवन कोष! बुझा चुका यह काल समीरण कितने प्राण दीप निर्दोष!...

यहाँ नहीं है चहल पहल वैभव विस्मित जीवन की, यहाँ डोलती वायु म्लान सौरभ मर्मर ले वन की। आता मौन प्रभात अकेला, संध्या भरी उदासी, यहाँ घूमती दोपहरी में स्वप्नों की छाया सी।...

बरसो ज्योति अमर तुम मेरे भीतर बाहर जग के तम से निखर निखर बरसो हे जीवन ईश्वर!...

यह जग मेघों की चल माया, भावी, स्वप्नों की छल छाया! तू बहती सरिता के जल पर देख रहा अपनी प्रतिछबि नर!...

मद से कंपित मदिराधर स्मित साक़ी, पी दिन रात! भुला दे जग के अखिल अभाव, सुरा प्रेयसि से कर न दुराव!...

छाया प्रकाश जन जीवन का बन जाता मधुर स्वप्न संगीत इस घने कुहासे के भीतर दिप जाते तारे इन्दु पीत।...

नीरव-तार हृदय में, गूँज रहे हैं मंजुल-लय में; अनिल-पुलक से अरुणोदय में। नीरव-तार हृदय में—...

प्रणय का हो उर में उन्मेष सुरा पर यदि विश्वास! सफल हो जीवन का आवेश हृदय में यदि उल्लास!...

ऐ मिट्टी के ढेले अनजान! तू जड़ अथवा चेतना-प्राण? क्या जड़ता-चेतनता समान, निर्गुण, निसंग, निस्पृह, वितान?...

नीरव सन्ध्या मे प्रशान्त डूबा है सारा ग्राम-प्रान्त। पत्रों के आनत अधरों पर सो गया निखिल बन का मर्मर, ज्यों वीणा के तारों में स्वर।...

अंबर फिर फिर क्या करता स्थिर, यह चिर अविदित! छीन स्वप्न सुख, देता क्यों दुख वह सब को नित!...

छाया? वह लेटी है तरु-छाया में सन्ध्या-विहार को आया मैं। मृदु बाँह मोड़, उपधान किए,...

यदि मदिरा मिलती हो तुझको व्यर्थ न कर, मन, पश्चाताप, सौ सौ वंचक तुझको घेरे करें भले ही आर्त प्रलाप!...

अहे विश्व! ऐ विश्व-व्यथित-मन! किधर बह रहा है यह जीवन? यह लघु-पोत, पात, तृण, रज-कण, अस्थिर-भीरु-वितान,...

आम्र मंजरित, मधुप गुंजरित गंध समीरण मंद संचरित! प्राणों की पिक बोल उठी फिर अंतर में कर ज्वाल प्रज्वलित!...

सरिता से बहते जाते चंचल जीवन पल, आदि अंत अज्ञात, ज्ञात बस फेनिल कल कल!...

सुरा में दुरा स्वर्ग का सार, भले हो उमर ख़ुमार! सुमन उर में सौरभ उद्गार, भले तन छेदे ख़ार!...

बुझता हो जीवन प्रदीप जब उसको मदिरा से भरना, मृत्यु स्पर्श से मुरझाए पलकों को मधु से तर करना!...

मधु के घन से, मंद पवन से गंध उच्छ्वसित अब मधु कानन, निज मर्माहत मृदु उर का क्षत विस्मृति से तू भर ले कुछ क्षण!...

भूखे भजन न होई गुपाला, यह कबीर के पद की टेक, देह की है भूख एक!— कामिनी की चाह, मन्मथ दाह,...

उमर क्यों मृषा स्वर्ग की तृषा? कल्पना मात्र शून्य अपवर्ग, धरा पर ही यह जीवन स्वर्ग! स्वर्ग का नूर सुरा, प्रिय हूर,...

फहराओ तिरंग फहराओ! हिन्द चेतना के जाग्रत ध्वज ज्योति तरंगों में लहराओ! इंद्र धनुष से गर्जन घन में...

रे जागो, बीती स्वप्न रात! मदिरारुण लोचन तरुण प्रात करती प्राची से पलक पात! अंबर घट से, साक़ी हँसकर,...