जीवन-यान
अहे विश्व! ऐ विश्व-व्यथित-मन! किधर बह रहा है यह जीवन? यह लघु-पोत, पात, तृण, रज-कण, अस्थिर-भीरु-वितान, किधर?--किस ओर?--अछोर,--अजान, डोलता है यह दुर्बल-यान? मूक-बुद्बुदों-से लहरों में मेरे व्याकुल-गान फूट पड़ते निःश्वास-समान, किसे है हा! पर उनका ध्यान! कहाँ दुरे हो मेरे ध्रुव! हे पथ-दर्शक! द्युतिमान! दृगों से बरसा यह अपिधान देव! कब दोगे दर्शन-दान?

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