प्रीति निर्झर
यहाँ तो झरते निर्झर, स्वर्ण किरणों के निर्झर, स्वर्ग सुषमा के निर्झर निस्तल हृदय गुहा में नीरव प्राणों के स्वर! ज्ञान की कांति से भरे भक्ति की शांति से परे, गहन श्रद्धा प्रतीति के स्वर्णिम जल में तिरते सतत सत्य शिव सुंदर! अश्रु मज्जित जीवन मुख स्वप्न रंजित से सुख दुख, रहस आनंद तरंगित सहज उच्छ्वसित हृदय सरोवर! गान में भरा निवेदन प्राण में भरा समर्पण ध्यान में प्रिय दर्शन प्रिय ही प्रिय रे गायन अर्हनिशि भीतर बाहर यहाँ तो झरते निर्झर स्वर्ण के सौ सौ निर्झर स्वर्ग शोभा के निर्झर उमड़ उमड़ उठता प्रतीति के सुख से अंतर!

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