यह जग मेघों की चल माया
यह जग मेघों की चल माया, भावी, स्वप्नों की छल छाया! तू बहती सरिता के जल पर देख रहा अपनी प्रतिछबि नर! उठे रे, कल के दुख से व्याकुल, जीवन सतरँग वाष्पों का पुल! कल का दुख केवल पागलपन, पल पल बहता स्वप्निल जीवन! ले, उर में हाला ज्वाला भर, सुरा पान कर, सुधा पान कर!

Read Next