कितने ही कल चले गये छल
कितने ही कल चले गए छल, रहा दूर नित मृग जल! हा दुख, हा दुख, कह कह सब सुख हुआ स्वप्नवत् ओझल! अब का पल मत खो रे दुर्बल, पान पात्र भर फेनिल, तुहिन तरल जीवन न जाय ढल, प्रणय ज्वाल पी ग़ाफ़िल!

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