वह लेटी है तरु छाया में
छाया? वह लेटी है तरु-छाया में सन्ध्या-विहार को आया मैं। मृदु बाँह मोड़, उपधान किए, ज्यों प्रेम-लालसा पान किए; उभरे उरोज, कुन्तल खोले, एकाकिनि, कोई क्या बोले? वह सुन्दर है, साँवली सही, तरुणी है--हो षोड़षी रही; विवसना, लता-सी तन्वंगिनि, निर्जन में क्षण भर की संगिनि! वह जागी है अथवा सोई? मूर्छित या स्वप्न-मूढ़ कोई? नारी कि अप्सरा या माया? अथवा केवल तरु की छाया?

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