मद से कंपित मदिराधर स्मित
मद से कंपित मदिराधर स्मित साक़ी, पी दिन रात! भुला दे जग के अखिल अभाव, सुरा प्रेयसि से कर न दुराव! जीवन सागर, साक़ी, दुस्तर, दुख की झंझावात उठे यदि, तू निज डगमग पाँव बढ़ा दे, सुरा नूह की नाव!

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