उमर क्यों मॄषा स्वर्ग की तृषा
उमर क्यों मृषा स्वर्ग की तृषा? कल्पना मात्र शून्य अपवर्ग, धरा पर ही यह जीवन स्वर्ग! स्वर्ग का नूर सुरा, प्रिय हूर, सुरा सुंदरी यहाँ कब दूर? गान, मधु पान पात्र भरपूर! हरित वन तीर, तरंगित नीर, सुरा अंगूरी, मदिर समीर, सखे, हाला भर, हृदय अधीर!

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