बुझता हो जीवन प्रदीप का
बुझता हो जीवन प्रदीप जब उसको मदिरा से भरना, मृत्यु स्पर्श से मुरझाए पलकों को मधु से तर करना! द्राक्षा दल का अंगराग मल ताप विकल तन का हरना, स्वप्निल अंगूरी छाया में क़ब्र बना, मुझको धरना!

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