अंगों में हो भरी उमंग
अंगों में हो भरी उमंग, नयनों में मदिरालस रंग, तरुण हृदय में प्रणय तरंग! रोम रोम से उन्मद गंध छूटे, टूटें जग के बंध, रहे न सुख दुख से सम्बन्ध! कोमल हरित तृणों से संकुल मेरी निभृत समाधि से अतुल निकले मदोच्छ्वास मदिराकुल! यदि कोई मदिरा का पागल आए उसके ढिंग, विरहाकल उसे सूँघ हो जाए शीतल!

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