स्नेहमय हुआ हृदय का दीप
स्नेहमय हुआ हृदय का दीप प्रिया की रूप शिखा धर मौन! प्रेम के हित दे निज बलिदान नहीं जी उठा सखे, वह कौन? दीप का करना यदि गुण गान, शलभ से कहो, जिसे अपनाव; उमर यह है निगूढ़ कुछ बात, जलों पर पड़ता अधिक प्रभाव!

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