हृदय तारुण्य
आम्र मंजरित, मधुप गुंजरित गंध समीरण मंद संचरित! प्राणों की पिक बोल उठी फिर अंतर में कर ज्वाल प्रज्वलित! डाल डाल पर दौड़ रही वह ज्वाल रंग रंगों में कुसुमित नस नस में कर रुधिर प्रवाहित उर में रस वश गीत तरंगित! तन का यौवन नहीं हृदय का यौवन रे यह आज उच्छ्वसित फिर जग में सौन्दर्य पल्लवित प्राणों में मधु स्वप्न जागरित! आम्र मंजरित, मधुप गुंजरित गंध समीरण अंध सचरित! प्राणों में पिक बोल उठी फिर दिशि दिशि में कर ज्वाल प्रज्वलित!

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