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न इश्क न हुस्न गए हैं दोनों बाहर अवमूल्यन में...

आग नाव में भर कर सूरज चला गया है, आसमान के गुम्बद को जाला जकड़े है पाँवों के नीचे धूमिल धरती उदास है।...

उड़ी आई, प्यार का अवलम्ब देकर- चहचहाई।...

नहीं आया जहाँ कोई नृत्य करने, वहाँ आओ काल की गहराइयों में मुक्त होकर प्यार करने। नहीं आया जहाँ कोई दीप धरने...

चक्र चल रहा है वेग से अत्यधिक प्रमाद से कुचल दिए गए हैं पथिक दुखान्त के रथ का सारथी है बधिक ।...

कंठ से नहीं-- अब पाँव से निकलता है संगीत-- पाँव से उमड़ता है संगीत-- अवश्यम्भावी है...

वहाँ उस आइने में खड़ा है मेरा दोस्त-- शमशेर ! उम्र-क़ैद का अकेला अपराधी बाहर न निकलने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ !...

जो रुचिर रुचि से रची हो, शब्द शासित हो, प्रवाहत सरित-स्वर हो, चेतना के...

हाथी-सा बलवान, जहाजी हाथों वाला और हुआ सूरज-सा इंसान, तरेरी आँखों वाला और हुआ एक हथौड़े वाला घर में और हुआ माता रही विचार अंधेरा हरने वाला और हुआ...

न घटा जो यहाँ कभी पहले अब तो घटा-...

पस्त हो गई हैं हाथ की अंगुलियाँ गाँठ की पर्त खोलते-खोलते अंगूठे...

खेल-खेल में उड़ा, पहुँचा- फट गया- आकाश में...

शाम चल दी प्रकाश के साथ मौन छोड़ कर पीछे गहरा, केन पर...

निरंतर बना रहेगा जीवंत और विकासमान ऐतिहासिक द्वन्द्वात्मक...

पाकिस्तान हो गया कब्रिस्तान। भीतर गड़े भुट्टो आराम करते हैं; बाहर खड़े जिया...

फिर से मुक्त हुआ जन-मानस; फिर से...

हमका न मारौ नजरिया! ऊँची अटरिया माँ बैठी रहौ तुम, राजा की ओढ़े चुनरिया। वेवेल के संगे माँ घूमौ झमाझम,...

सभी तो लड़ते हैं लड़ाइयाँ अस्तित्व की...

चलते-चलते भी न चलकर थक गया दिमाग, पाँव की यात्रा पर गए पाँव न थके विवेक हो गया बैठ गया दूध...

काल पड़ा है बँधा ताल के श्याम सलिल में ताब नहीं रह गई देश के अनल-अनिल में...

पुकार रहे हो क्या तुम प्रतीक्षा में वक्ष का द्वार खोले बाँसुरी की गूँज पर वहाँ आने के लिए ?...

जंगल जमीन को जकड़े षट्मुख षड्यंत्र से शासन करता है।...

सुबह! न निकले सूर्य की केवल, उत्तर के केसरिया रंग की-...

मैं हूँ अनास्था पर लिखा आस्था का शिलालेख नितान्त मौन, किन्तु सार्थक और सजीव...

दूर-दूर तक अतल नील से दिक्-प्रसार को चाँपे, सागर सम्मुख झेल रहा है द्वन्द्व-द्वन्द्व के कराघात की जल पर पड़तीं थापें,...

सेठ करोड़ीमल के घोड़े का नौकर है भूरा आरख।– बचई उसका जानी दुश्मन! हाथ जोड़कर,...

बाँस की बंशी बजाती गेहुँओं के गीत गाती- मोदमाती...

शिकायत पर शिकायत है चिड़िया को मुझसे कि उसका घोंसला...

पैसा दिमाग में वैसे सुअर जैसे हरे खेत में...

शशक तुम- प्राकृत जैविक तनधारी हरी घास पर बैठे...

देश की छाती दरकते देखता हूँ! थान खद्दर के लपेटे स्वार्थियों को, पेट-पूजा की कमाई में जुता मैं देखता हूँ! सत्य के जारज सुतों को,...

कुछ नहीं करता कोई और करते सब हैं कुछ न कुछ किए-न-किए के बराबर। कुछ नहीं जीते कोई...

कल का अखबार हूँ मैं आज का नहीं इतिहास के पेट में पड़ा हूँ मैं आज के बोध से दूर...

कागज की नावें हैं तैरेंगी तैरेंगी, लेकिन वह डूबेंगी डूबेंगी डूबेंगी॥...

दोषी हाथ हाथ जो चट्टान को तोडे़ नहीं...

चेहरा लगाए है गुरिल्ला का सुबह आने के लिए दिन का दायित्व...

आग को आदमी बनाए है पालतू अपने लिए...

हे मेरी तुम डंकमार संसार न बदला प्राणहीन पतझार न बदला बदला शासन, देश न बदला...

धूप-ही-धूप में निकला मेरे पास से काले पहाड़ का हाथी। आश्वस्त कर गया मुझे...

कैद है आदमी का सूरज आदमी की कोठरी में, आदमी के साथ।...