शशक
शशक तुम- प्राकृत जैविक तनधारी हरी घास पर बैठे मुझको दिखते प्रिय लगते हो श्वेत कपासी परम अभाषिक मौन समान, भाषिक होकर जो बन जाता मेरी कविता की प्रतिमूर्ति, जिससे होती सम्मोहन की पूर्ति

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