पूंजीवादी व्यवस्था
हे मेरी तुम डंकमार संसार न बदला प्राणहीन पतझार न बदला बदला शासन, देश न बदला राजतंत्र का भेष न बदला, भाव बोध उन्मेष न बदला, हाड़-तोड़ भू भार न बदला कैसे जियें? यही है मसला नाचे कोैन बजाये तबला? (पूंजीवादी व्यवस्था के प्रति केदारनाथ जी के उद्गार)

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