फिर से मुक्त हुआ
फिर से मुक्त हुआ जन-मानस; फिर से लाल अनार हृदय में फूला; फिर से समय-सिंधु लहराया-- उमँड़ा; अब जब ढील मिली जनता को दुर्दम अंकुश के हटने से। फिर से हिमवानी ओठों पर बिजली दौड़ी; फिर से वाणी और विचार प्रवाहित हुए पवन-से और नदी से। फिर से उमँड़ी मोद निनादित तरुण तरंगे। फिर से दिग्वधुओं ने अपने घूँघट खोले; फिर से धूप धरा पर उतरी और भरत-नाट्यम नाची; फिर से पाया प्रकृति-पुरुष ने लोकतंत्र का जीवन-दर्शन।

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