उड़ी, आई
उड़ी आई, प्यार का अवलम्ब देकर- चहचहाई। गई, ऊपर मुझे तजकर; हुई ओझल, पुनः वापस नहीं आई- प्यार का अवलम्ब लेकर। मैं, बिना उसके उसे अब भी जिलाए, प्यार का अवलम्ब पाए, जी रहा हूँ जिंदगी को जगमगाए।

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