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उमर दिवस निशि काल और दिशि रहे एक सम, जब कि न थे हम! फिरता था नभ सूर्य चंद्र प्रभ, देख मुग्ध छवि गाते थे कवि!...

वीणा वंशी के दो स्वर जब हो जाते आपस में लय, प्रिये, हमारा मधुर मिलन भी हो सकता सुखमय निश्वय!...

मदिराधर रस पान कर रहस त्याग दिया जिसने जग हँस हँस, उसको क्या फिर मसजिद मंदिर सुरा भक्त वह मुक्त अनागस!...

विश्व श्याम जीवन के जलधर राम प्रणम्य, राम हैं ईश्वर! लक्ष्मण निर्मल स्नेह सरोवर करुणा सागर से भी सुंदर!...

स्तब्ध ज्योत्सना में जब संसार चकित रहता शिशु सा नादान , विश्व के पलकों पर सुकुमार विचरते हैं जब स्वप्न अजान,...

भाव सत्य बोली मुख मटका ‘तुम - मैं की सीमा है बंधन, मुझे सुहाता बादल सा नभ में मिल जाना, खो अपनापन!...

उमर रह, धीर वीर बन रह, सुरा के हित अधीर बन रह! प्रेम का मंत्र याद कर रह, न व्यर्थ विवाद वाद कर रह!...

जगती के जन पथ, कानन में तुम गाओ विहग! अनादि गान, चिर शून्य शिशिर-पीड़ित जग में निज अमर स्वरों से भरो प्राण।...

रक्त के प्यासे, रक्त के प्यासे! सत्य छीनते ये अबला से बच्चों को मारते, बला से! रक्त के प्यासे!...

मेरे निकुंज, नक्षत्र वास! इस छाया मर्मर के वन में तू स्वप्न नीड़ सा निर्जन में है बना प्राण पिक का विलास!...

स्वप्न समान बह गया यौवन पलकों में मँडरा क्षण! बँध न सका जीवन बाँहों में, अट न सका पार्थिव चाहों में,...

प्रेम के पांथवास में आज मस्त का पहना मैंने ताज! आत्म विस्मृति, मदिराधर पान यही मेरा जप-ज्ञान!...

उमर पी साँस साँस में चाह, सतत कर हास विलास, गले में डाल प्रिया की बाँह, पान कर मुख उच्छ्वास!...

हंस से बोली व्याकुल मीन करुणतर कातर स्वर में क्षीण, ‘बंधु, क्या सुन्दर हो’ प्रतिवार लौट आए जो बहती धार!’...

बाँध लिया तुमने प्राणों को फूलों के बंधन में एक मधुर जीवित आभा सी लिपट गई तुम मन में! बाँध लिया तुमने मुझको स्वप्नों के आलिंगन में! तन की सौ शोभाएँ सन्मुख चलती फिरती लगतीं...

जब तुम किसी मधुर अवसर पर मिलो कहीं हे बंधु, परस्पर, एक दूसरे पर हो जाओ तुम अपने को भूल निछावर!...

सुरा पान से, प्रीति गान से आज पांथशाला है गुंजित, मधु निकुंज सी खग पिक कूजित! कोटि प्रतिज्ञा तोड़, अवज्ञा...

स्वर्ण शिखर से चतुर्शृंग है उसके शिर पर दो उसके शुभ शीर्ष सप्त रे ज्योति हरत वर! तीन पाद पर खड़ा, मर्त्य इस जग में आकर त्रिधा बद्ध वह वृषभ रँभाता है दिग्ध्वनि भर!...

क्यों तुमने निज विहग गीत को दिया न जग का दाना पानी आज आर्त अंतर से उसके उठती करुणा कातर वाणी!...

जीवन की चंचल सरिता में फेंकी मैंने मन की जाली, फँस गईं मनोहर भावों की मछलियाँ सुघर, भोली-भाली।...

प्रिये, तुम्हारी मृदु ग्रीवा पर झूल रही जो मुक्ता माल, वे सागर के पलने में थे कभी सीप के हँसमुख बाल!...

मादक स्वप्निल प्याला फेनिल साक़ी, फिर फिर भर अंतर का आलोकित जिनका उर निश्चित पीते वे मधु मदिराधर का!...

यहाँ उमर के मदिरालय में कोई नहीं दुखी या दीन, सब की इच्छा पूरी करती सुरा, बना सबको स्वाधीन!...

विरह मंथित उर का आमोद मधुर मदिरामृत पान, शून्य जीवन का मात्र प्रमोद सुरा, साक़ी, प्रिय गान!...

सुन्दर मृदु-मृदु रज का तन, चिर सुन्दर सुख-दुख का मन, सुन्दर शैशव-यौवन रे सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन!...

वह मनुष्य जिसके रहने को जो छोटा आँगन, गृह-द्वार, खाने को रोटी का टुकड़ा, पीने को मदिरा की धार!...

बंधु, चाहता काल तोड़ दे हमें, छोड़ कंकाल! यही दैव की चाल, जगत स्वप्नों का स्वर्णिम जाल!...

उमर कर सब से मृदु बर्ताव, न रख तू शत्रु मित्र का भाव! प्रेम से ले निज अरि को जीत, नम्र बन, रख सबसे अपनाव!...

इस जीवन का भेद जिसे मिल गया गभीर अपार, रहा न उसको क्लेद मरण भी बना स्वर्ग का द्वार!...

रम्य मधुवन हो स्वर्ग समान, सुरा हो, सुरबाला का गान! तरुण बुलबुल की विह्वल तान प्रणय ज्वाला से भर दे प्राण!...

वृथा यह कल की चिन्ता, प्राण आज जी खोल करें मधुपान! नीलिमा का नीलम का जाम भरा ज्योत्स्ना से फेन ललाम!...

वनमाला में जो गुल लाला लहरा रहा अनल ज्वाला सम, रुधिर अरुण था किसी तरुण वह तरुण तुल्य नृप सुत का निरुपम!...

आवें प्रभु के द्वार! जो जीवन में परितापित हैं, हतभागे, हताश, शापित हैं, काम क्रोध मद से त्रासित हैं,...

पंचम पिकरव, विकल मनोभव, यौवन उत्सव! मधुवन गुंजित, नीर तरंगित, तीर कल ध्वनित!...

प्रिया तरुणी हो, तटिनी कूल, अरुण मदिरा, बहार के फूल; मधुर साक़ी हो, विधि अनुकूल, दर्द दिल जावे अपना भूल!...

सलज गुलाबी गालों वाली हाला मेरी चिर सहचर, बिना मादनी का जग जीवन बिना चाँदनी का अंबर!...

यह मेरा दर्पण चिर मोहित! जीवन के गोपन रहस्य सब इसमें होते शब्द तरंगित! कितने स्वर्गिक स्वप्न शिखर...

वह अमृतोपम मदिरा, प्रियतम, पिला, खिला दे मोह म्लान मन, अपलक लोचन, उन्मद यौवन, फूल ज्वाल दीपित हो मधुवन!...

मधुर साक़ी, उर का मधु पात्र प्रीति से भर दे तू प्रति बार, जन्म जन्मों की मेरी साध सुरा हो मेरी प्राणाधार!...

स्वप्न देही हो प्रिये हो तुम, देह तनिमा अश्रु धोई! रूप की लौ सी सुनहली दीप में तन के सँजोई!...