उमर दिवस निशि, काल और दिशि
उमर दिवस निशि काल और दिशि रहे एक सम, जब कि न थे हम! फिरता था नभ सूर्य चंद्र प्रभ, देख मुग्ध छवि गाते थे कवि! चंद्र वदनि की सी अलकावलि लहराती थी लोल शैवलिनि! कोमल चंचल धरणी श्यामल किसी मृग नयनि की थी दृग कनि!

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