वह अमृतोपम मदिरा, प्रियतम
वह अमृतोपम मदिरा, प्रियतम, पिला, खिला दे मोह म्लान मन, अपलक लोचन, उन्मद यौवन, फूल ज्वाल दीपित हो मधुवन! जंगम यह जग, दुर्गम अति मग, उर के दृग, प्रिय साक़ी, दे रँग! मदिरारुण मुख हो दृग सन्मुख रुक ना जाँय जब तक डगमग पग!

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