बंधु, चाहता काल
बंधु, चाहता काल तोड़ दे हमें, छोड़ कंकाल! यही दैव की चाल, जगत स्वप्नों का स्वर्णिम जाल! जब तक सुरा रसाल काल भी मोहित : साक़ी, ढाल, ढाल सुरा की ज्वाल, मृत्यु भी पी, जी उठे निहाल!

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