जगती के जन पथ, कानन में
जगती के जन पथ, कानन में तुम गाओ विहग! अनादि गान, चिर शून्य शिशिर-पीड़ित जग में निज अमर स्वरों से भरो प्राण। जल, स्थल, समीर, नभ में मिलकर छेड़ो उर की पावक-पुकार, बहु-शाखाओं की जगती में बरसा जीवन-संगीत प्यार। तुम कहो, गीत-खग! डालों में जो जाग पड़ी कलियाँ अजान, वह विटपों का श्रम-पूण्य नहीं वह मधु का मुक्त, अनन्त-दान! जो सोए स्वप्नों के तम में वे जागेंगे--यह सत्य बात, जो देख चुके जीवन-निशीथ वे देखेंगे जीवन-प्रभात!

Read Next