क्षण जीवी
रक्त के प्यासे, रक्त के प्यासे! सत्य छीनते ये अबला से बच्चों को मारते, बला से! रक्त के प्यासे! भूत प्रेत ये मनो भूमि के सदियों से पाले पोसे अँधियाली लालसा गुहा में अंध रूढियों के शोषे! मरने और मारने आए मिटते नहीं एक दो से ये विनाश के सृजन दूत हैं इनको कोई क्या कोसे! रक्त के प्यासे! यह जड़त्व है मन की रज का जो कि मृत्यु से ही जाता धीरे धीरे धीरे जीवन इसको कहीं बदल पाता! ऊर्ध्व मनुज ये नहीं, अधोमुख, उलटे जिनके जीवन मान, अंधकार खींचता इन्हें है गाता रुधिर प्रलय के गान! रक्त के प्यासे! हृदय नहीं ये देह लूटते हैं अबला से, जाति पाँति से रहित दुधमुहे बच्चों को मारते, बला से! रक्त के प्यासे! ऊर्ध्व मनुज बनना महान है वे प्रकाश की है संतान ऊर्ध्व मनुज बनना महान है करना उन्हें आत्म निर्माण! उन्हें अनादि अनंत सत्य का करना है आदान प्रदान धर प्रतीति ज्वाला हाथों में करना जीवन का सम्मान! उन्हें प्रेम को सत्य, ज्योति को शलभ समर्पित करने प्राण, धुल जावें धरती के धब्बे इनके प्राणों की बरसा से! सत्य के प्यासे!

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