जीवन की चंचल सरिता में
जीवन की चंचल सरिता में फेंकी मैंने मन की जाली, फँस गईं मनोहर भावों की मछलियाँ सुघर, भोली-भाली। मोहित हो, कुसुमित-पुलिनों से मैंने ललचा चितवन डाली, बहु रूप, रंग, रेखाओं की अभिलाषाएँ देखी-भालीं। मैंने कुछ सुखमय इच्छाएँ चुन लीं सुन्दर, शोभाशाली, औ’ उनके सोने-चाँदी से भर ली प्रिय प्राणों की डाली। सुनता हूँ, इस निस्तल-जल में रहती मछली मोतीवाली, पर मुझे डूबने का भय है भाती तट की चल-जल-माली। आएगी मेरे पुलिनों पर वह मोती की मछली सुन्दर, मैं लहरों के तट पर बैठा देखूँगा उसकी छबि जी भर।

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