मादक स्वप्निल प्याला फेनिल
मादक स्वप्निल प्याला फेनिल साक़ी, फिर फिर भर अंतर का आलोकित जिनका उर निश्चित पीते वे मधु मदिराधर का! जग के तम से, संशय भ्रम से मोह मलिन जिनका मन मंदिर, उनके भीतर जीवन-भास्वर जलता दीप न साक़ी का फिर!

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