वह मनुष्य जिसके रहने को
वह मनुष्य जिसके रहने को जो छोटा आँगन, गृह-द्वार, खाने को रोटी का टुकड़ा, पीने को मदिरा की धार! जो न किसी का सेवक शासक, हँसमुख हों जिसके सहचर, कहता उमर सुखी है वह नर, स्वर्ग उसे है यह संसार!

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