वन माला में जो गुल लाला
वनमाला में जो गुल लाला लहरा रहा अनल ज्वाला सम, रुधिर अरुण था किसी तरुण वह तरुण तुल्य नृप सुत का निरुपम! नील नयन में फँसा रहा मन फूल बनफ़शा जो चिर सुंदर, वह मयंक में चारु अंक सा तिल निशंक था तरुणी मुख पर!

Read Next