प्रेम के पांथ वास में आज
प्रेम के पांथवास में आज मस्त का पहना मैंने ताज! आत्म विस्मृति, मदिराधर पान यही मेरा जप-ज्ञान! विश्वमय का जो विशद निवास व्याप्त उसमें मेरे चिर प्राण, उच्च मस्तक मेरा आकाश, गात्र ब्रह्मांड महान!

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