उमर कर सब से मृदु बर्ताव
उमर कर सब से मृदु बर्ताव, न रख तू शत्रु मित्र का भाव! प्रेम से ले निज अरि को जीत, नम्र बन, रख सबसे अपनाव! मधुर बन, निर्भय, सरल, विनीत, बना हाला बाला को मीत! छाँह सी भावी, स्वप्न अतीत, मात्र मदिरामृत स्वर्ग पुनीत!

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