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सुनो! कुछ बातें ऐसी हैं जो कहने की नहीं हैं क्यों कि वास्तव में...

कुछ चीज़ें होती हैं जो जहाँ तक जाती हैं वहीं तक जाती हैं। उनसे आगे कोई द्वार नहीं खुलते।...

न कुछ में से वृत्त यह निकला कि जो फिर शून्य में जा विलय होगा : किंतु वह जिस शून्य को बाँधे हुए है- उस में एक रूपातीत ठण्डी ज्योति है ।...

गाड़ी ठहराने के लिए जगह खोजते-खोजते हम घूम आये शहर : बीमे की क़िस्तें चुकाते...

ऊपर साँय-साँय बाहर कुछ सरक रहा दबे पाँव : अन्धकार में आँखों के अँगारे वह हिले-...

हाँ, भाई, वह राह मुझे मिली थी; कुहरे में दी जैसे मुझे दिखाई ...

मेरा-तुम्हारा प्रणय इस जीवन की सीमाओं से बँधा नहीं है। इस जीवन को मैं पहले धारण कर चुका हूँ। पढ़ते-पढ़ते, बैठे-बैठे, सोते हुए एकाएक जाग कर, जब भी तुम्हारी कल्पना करता हूँ,...

जो पुल बनाएँगे वे अनिवार्यतः पीछे रह जाएँगे। सेनाएँ हो जाएँगी पार...

मैं, जो बंदी हूं गाता हूं आनन्दित-मुक्तिगीत: मेरी बेडि़यां फुसफुसाती रहती हैं- "तुम समग्र हो,...

कुछ है जिस में मैं तिरता हूँ। जब कि आस-पास न जाने क्या-क्या झिरता है ...

यह एक और घर पीछे छूट गया, एक और भ्रम जो जब तक मीठा था ...

बोधिसत्त्व की गुफाओं में सदियों का सन्नाटा टूट गया इतिहासों की गूँज सुनी क्या तुमने महाबुद्ध?...

रवि गये-जान जब निशि ने घूँघट से बाहर देखा; शशि के मुरझाये मुख पर पायी विषाद की रेखा। प्रियतम से मिलने सत्वर सम्भ्रान्त चली वह आयी। उस को निज अंग लगा कर शशि ने जीवन-गति पायी,...

कितने प्रसन्न रहते आये हैं। युग युग के धृतराष्ट्र, सोच कर गान्धारी ने पट्टी बाँधी थी होने को सहभागिन...

हम नदी के साथ-साथ सागर की ओर गए पर नदी सागर में मिली हम छोर रहे: ...

घड़े फूट जाते हैं कीच में खड़े हम पाते हैं कि अमृत और हलाहल दोनों ही अमोघ हैं...

पृथ्वी तो पीडि़त थी कब से आज न जाने नभ क्यों रूठा, पीलेपन में लुटा, पिटा-सा मधु-सपना लगता है झूठा! मारुत में उद्देश्य नहीं है धूल छानता वह आता है, हरियाली के प्यासे जग पर शिथिल पांडु-पट छा जाता है।...

सचमुच के आये को कौन खोले द्वार! हाथ अवश नैन मुँदे...

नभ में सन्ध्या की अरुणाली, भू पर लहराती हरियाली, है अलस पवन से खेल रही भादों की मान भरी शाली: री, किस उछाह से झूम उठी तेरी लोलक-लट घुँघराली? झुक कर नरसल ने सरसी में अपनी लघु वंशी धो ली,...

मैं ने तब पूछा था : और रसों में, क्या, मैत्री-भाव का भी कोई रस है? और आज तुम ने कहा :...

कोई हैं जो अतीत में जीते हैं : भाग्यवान् हैं वे, क्यों कि उन्हें कभी कुछ नहीं होगा। कोई हैं...

तारे, तू तारा देख। काश कि मैं तुझे देखूँ तारों की हज़ारहा आँखों से।...

गये दिनों में औरों से भी मैं ने प्रणय किया है- मीठा, कोमल, स्निग्ध और चिर-अस्थिर प्रेम दिया है। आज किन्तु, प्रियतम! जागी प्राणों में अभिनव पीड़ा- यह रस किसने इस जीवन में दो-दो बार पिया है?...

कहीं रहा चलते-चलते चुक जाएगा दिन। सहसा झुक आएगी साँझ घनेरी।...

छलने! तुम्हारी मुद्रा खोटी है। तुम मुझे यह झूठे सुवर्ण की मुद्रा देते अपने मुख पर ऐसा दिव्य भाव स्थापित किये खड़ी हो! और मैं तुम्हारे हृदय में भरे असत्य को समझते हुए भी चुपचाप तुम्हारी दी हुई मुद्रा को स्वीकार कर लेता हूँ। इसलिए नहीं कि तुम्हारी आकृति मुझे मोह में डाल देती है- केवल इस लिए कि तुम्हारे असत्य कहने की प्रकांड निर्लज्जता को देख कर मैं अवाक् और स्तिमित हो गया हूँ।...

अधोलोक में? चलो, वहीं जाना होगा तो वहीं सही। जितनी तेज़ चलेंगे, यह राह बचेगी उतनी थोड़ी। जो विलमते, पड़ाव करते पैदल जाएँगे जाएँ- हम-तुम क्यों न कर लें सवारी के लिए घोड़ी?...

पैर उठा और दबा धीमी हुई गाड़ी और रुक गयी। इंजन घरघराता रहा। मैं मुड़ा, एक लम्बी दीठ-भर...

मैं तुम्हें जानता नहीं। तुम किसी पूर्व परिचय की याद दिलाती हो, पर मैं बहुत प्रयत्न करने पर भी तुम्हें नहीं पहचान पाता। मुझे नया जीवन प्राप्त हुआ है। कभी-कभी मन में एक अत्यन्त क्षीण भावना उठती है कि जिस पंक से निकल कर मैं ने यह नवीन जीवन प्राप्त किया है, तुम उसी पंक का कोई जन्तु हो। जो केंचुल मैं ने उतार फेंकी है, तुम उसी का कोई टूटा हुआ अवशेष हो। इसके अतिरिक्त भी हमारा कोई परिचय या सम्बन्ध है, यह मैं किसी प्रकार का अनुभव नहीं कर पाता।...

पीठिका में शिव-प्रतिमा की भाँति मेरे हृदय की परिधि में तुम्हारा अटल आसन है। मैं स्वयं एक निरर्थक आकार हूँ, किन्तु तुम्हारे स्पर्श से मैं पूज्य हो जाती हूँ क्योंकि तुम्हारे चरणों का अमृत मेरे शरीर में संचारित होता है।...

प्रियतम, एक बार और, एक क्षण-भर के लिए और! मुझे अपनी ओर खींच कर, अपनी समर्थ भुजाओं से अपने विश्वास-भरे हृदय की ओर खींच कर, संसार के प्रकाश से मुझे छिपा कर, एक बार और खो जाने दो, एक क्षण-भर के लिए और समझने दो कि वह आशंका निर्मूल है, मिथ्या है!...

अनार कच्चा था पर बुलबुल भी शायद बच्चा था रोज़ फिर-फिर आता टुक्! टुक्! दो-चार चोंच मार जाता।...

उस ने वहाँ अपनी नाक गड़ाते हुए हुमक कर कहा और दुहराता रहा- (दुलार पढ़ा हुआ नहीं भी था-पर क्या बात भी पढ़ी हुई नहीं थी?)-...

तुम्हारा घाम नया अंकुर हरियाता है तुम्हारा जल पनपाता है तुम्हारा मृग चौकड़ियाँ भरता आता है चर जाता है।...

मेरी पोर-पोर गहरी निद्रा में थी जब तुमने मुझे जगाया। हिमनिद्रा में जड़ित रीछ...

तुम्हारी पलकों का कँपना। तनिक-सा चमक खुलना, फिर झँपना। तुम्हारी पलकों का कँपना। मानो दीखा तुम्हें लजीली किसी कली के...

भैंस की पीठ पर चार-पाँच बच्चे भोले गोपाल से भगवान् जैसे सच्चे...

देश-देश में बन्धु होंगे पर बहुएँ नहीं होंगी (राम की साखी के बावजूद); किसी देश में बहू मिल जाएगी...

काल की रेती पर हमारे पैरों के छापे? हमीं तो हैं बिखरे बालू के कण जिन पर लिखता बढ़ जाता है काल...

पेड़ अपनी-अपनी छाया को आतप से ओट देते चुप-चाप खड़े हैं।...

वन में महावृक्ष के नीचे खड़े मैं ने सुनी अपने दिल की धड़कन। फिर मैं चल पड़ा। पेड़ वहीं धारा की कोहनी से घिरा...