रवि गये जान जब निशि ने
रवि गये-जान जब निशि ने घूँघट से बाहर देखा; शशि के मुरझाये मुख पर पायी विषाद की रेखा। प्रियतम से मिलने सत्वर सम्भ्रान्त चली वह आयी। उस को निज अंग लगा कर शशि ने जीवन-गति पायी, 'रविरोष अभी बाकी है', 'मिलनोचित समय' नहीं है 'नीलाम्बर व्यस्त हुआ है', 'भूषण-लडिय़ाँ बिखरी हैं', कब सोचा यह सब निशि ने? जब उस की स्त्री-आत्मा का आह्वान किया प्रकृति ने?

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