वासंती
मेरी पोर-पोर गहरी निद्रा में थी जब तुमने मुझे जगाया। हिमनिद्रा में जड़ित रीछ हो एकाएक नया चौंकाया-यों मैं था। पर अब! चेत गयी हैं सभी इन्द्रियाँ एक अवश आज्ञप्ति उन्हें कर गयी सजग, सम्पुजित; पूरा जाग गया हूँ एक बसन्ती धूप-सने खग-रव में; जान गया हूँ उस पगले शिल्पी ईश्वर का क्रिया-कल्प! फिर छुओ! प्राण पा गयी है वह प्रस्तर प्रतिमा!

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