कुछ चीज़ें होती हैं जो
कुछ चीज़ें होती हैं जो जहाँ तक जाती हैं वहीं तक जाती हैं। उनसे आगे कोई द्वार नहीं खुलते। कुछ चीजें होती हैं जो कहीं नहीं जातीं न कहीं ले जाती हैं पर जिन से द्वार खुलते हैं और खुलते जाते हैं और हम उनके पार होते जाते हैं। इतनी दूर कि कभी सहम कर लौटने को भी हो आते हैं पर वहाँ से जो होता है लौटना नहीं होता : नयी यात्रा होती है मुड़ कर, थम कर बिलम कर, रम कर।

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