शाली
नभ में सन्ध्या की अरुणाली, भू पर लहराती हरियाली, है अलस पवन से खेल रही भादों की मान भरी शाली: री, किस उछाह से झूम उठी तेरी लोलक-लट घुँघराली? झुक कर नरसल ने सरसी में अपनी लघु वंशी धो ली, झिल्ली के प्लुत एक स्वर में संसृति की साँय-साँय बोली: किस दूरी से आहूत, अवश, उड़ चली विहगों की टोली: किस तरल धूम से भर आयीं तेरी आँखें काली-काली? -भादों की मान-भरी शाली!

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