तं तु देशं न पश्यामि
देश-देश में बन्धु होंगे पर बहुएँ नहीं होंगी (राम की साखी के बावजूद); किसी देश में बहू मिल जाएगी जहाँ बन्धु कोई नहीं होगा। किसी की जगह कोई नहीं लेता : यह तर्क भी दर्शन की जगह नहीं लेगा, क्यों नहीं मैं ही अपनी जगह दूसरा व्यक्तित्व खोज लेता?

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