महावृक्ष के नीचे (दूसरा वाचन)
वन में महावृक्ष के नीचे खड़े मैं ने सुनी अपने दिल की धड़कन। फिर मैं चल पड़ा। पेड़ वहीं धारा की कोहनी से घिरा रह गया खड़ा। जीवन : वह धनी है, धुनी है अपने अनुपात गढ़ता है। हम : हमारे बीच जो गुनी है उन्हें अर्थवती शोभा से मढ़ता है।

Read Next