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महावृक्ष के नीचे (दूसरा वाचन)
महावृक्ष के नीचे (दूसरा वाचन)
अज्ञेय
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Hindi
वन में महावृक्ष के नीचे खड़े मैं ने सुनी अपने दिल की धड़कन। फिर मैं चल पड़ा। पेड़ वहीं धारा की कोहनी से घिरा रह गया खड़ा। जीवन : वह धनी है, धुनी है अपने अनुपात गढ़ता है। हम : हमारे बीच जो गुनी है उन्हें अर्थवती शोभा से मढ़ता है।
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Last edited by
abhishek
May 20, 2017
Added by
Chhotaladka
March 31, 2017
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